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चुनाव सुधार एक अनिवार्य आवश्यकता...

मुझे मतदान का आधिकार प्राप्त है किन्तु उसकी क्या उपयोगिता .... यदि मैं इसे कर्तव्य की तरह न लूं...? या न ले सकूं...? यह राष्ट्र की दशा और दिशा का निर्धारण करने और कराने की प्रक्रिया है । यह अधिकार नहीं एक अनिवार्य कर्तव्य है । शासन को इसमें सुधार के विकल्प खोजना होंगे । भारत के दृष्टिकोण से इसमें बहुत सारे सुधार की आवश्यकता है -
(१) इसे आधिकार नहीं कर्तव्य की श्रेणी में रखना होगा और ऐसा विकल्प खोजना होगा कि - आप चाहे कहीं भी हों , वहीं से आप मतदान कर सकें और मतदान करना आपके लिए अनिवार्य हो ।
(२) एक साथ मतदान प्रक्रिया संपन्न कराने में शासकीय धन बहुत अधिक व्यय हो रहा है । अतः अलग - मतदान दल के स्थान पर क्षेत्रों में ऑनलाइन केन्द्रों/बैंकों/पोस्ट ऑफिस व अन्य कार्यालयों आदि पर एक समयावधि ( एक,दो, या तीन माह) में मतदान कराने की व्यवस्था करना चाहिए, जहां आधार कार्ड के साथ मतदान किया जा सके ।
(३) हमारे समाज का एक बड़ा वर्ग मतदान के महत्व से अनभिज्ञ है । वह नहीं जानता कि - उसका यह मत उसके और उसके राष्ट्र के हित का किस प्रकार निर्धारण कर रहा है क्योंकि उसे न तो राजनीति शास्त्र का ज्ञान है, न समाज शास्त्र का और न ही अर्थ शास्त्र का । इसीलिए तो वोट के सौदागर उसे छोटे से व्यक्तिगत लाभ का लालच देकर चुनाव जीत लेते हैं और बाद में समाज सेवा से हटकर स्वार्थ सेवा में लिप्त हो जाते हैं ।
(४) चुनाव लड़ने और मतदाता होने के लिए एक न्यूनतम शैक्षणिक और बौद्धिक योग्यता निर्धारित किया जाना चाहिए क्योंकि आज की प्रणाली में जो व्यक्ति चपरासी नहीं बन सकता, वह देश के एक प्रशासनिक विभाग का मंत्री या समाज की एक बड़ी इकाई का प्रमुख बन सकता है । क्या ऐसे अयोग्य नेतृत्व की अपेक्षा एक योग्य नेतृत्व समाज के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध नहीं होगा ?
(५) किसी जन प्रतिनिधि की आर्थिक उन्नति पर कानून का कठोर शिकंजा होना चाहिए और किसी अन्य नागरिक की अपेक्षा जनप्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार की सजा अधिक कठोर होनी चाहिए ।
ऐसे अनेक अपेक्षित सुधारों की सूची बनाकर उन पर कार्य करना राष्ट्र के उत्थान के लिए अत्यंत अनिवार्य है । - अभय दीपराज - 9893101237

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